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एटा के संतरे और मौसमी से महक रहे आंध्र-असम के बाग, पाकिस्तानी नींबू की विशेष मांग

पौध तैयार होने के बाद इन्हें ट्रकों के जरिए प्रदेश के कुछ जिलों के अलावा आंध्र प्रदेश, असम, पंजाब में भेजा जाता है। गांव वाले बताते हैं कि मुख्य रूप से यह काम महाराष्ट्र में होता है, लेकिन वहां पौध महंगी होने की वजह से हमारे यहां मांग बढ़ी है।

भले ही एटा में संतरा और मौसमी जैसे फलों की पैदावार नहीं होती लेकिन यहां तैयार किए जा रहे पौधों की खुशबू से आंध्र प्रदेश, असम तक के बाग महक रहे हैं। जलेसर तहसील क्षेत्र के तीन गांव में नर्सरी फल-फूल रही है। जहां हिमाचल प्रदेश से बीज लाकर लोग पौध तैयार करते हैं जिन्हें प्रदेश के कुछ जिलों और अन्य प्रांतों में भेजा जाता है। 

जलेसर क्षेत्र के गांव मनीगढ़ी, पायदापुर और कोठी में नर्सरी का यह कारोबार सैकड़ों बीघा खेतों में फैल गया है। करीब 60 नर्सरी संचालित की जा रही हैं, जिनसे सैकड़ों लोग जुड़े हुए हैं। ये लोग खट्टा का बीज हिमाचल प्रदेश से खरीदकर लाते हैं। जिसकी यहां पौध करने के बाद उस पर संतरा, मौसमी, किन्नू और नींबू की क्राफ्टिंग की जाती है। इस पौध को तैयार होने में दो से ढाई साल का वक्त लगता है। पौध तैयार होने के बाद इन्हें ट्रकों के जरिए प्रदेश के कुछ जिलों के अलावा आंध्र प्रदेश, असम, पंजाब में भेजा जाता है। गांव वाले बताते हैं कि मुख्य रूप से यह काम महाराष्ट्र में होता है, लेकिन वहां पौध महंगी होने की वजह से हमारे यहां मांग बढ़ी है।