पटना । लोकसभा चुनाव अगर नियत समय पर हुए तो अब छह महीने रह गए हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों ने चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी है, वहीं दिग्गज सुरक्षित सीट की तलाश में दिल बदलने की तैयारी में लग गए है।
पटना [सुभाष पांडेय]। लोकसभा चुनाव अगर नियत समय पर हुए तो अब छह महीने रह गए हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों ने चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी है, वहीं दिग्गज सुरक्षित सीट की तलाश में दिल बदलने की तैयारी में लग गए है।
शत्रुघ्न सिन्हा के पटना साहिब से ही राजद, कीर्ति आजाद के दरभंगा से ही कांग्रेस, रामकिशोर सिंह के शिवहर से राजद और चौधरी महबूब अली कैसर के खगडिय़ा से ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे की संभावना है। मधेपुरा में गुरु-शिष्य के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने का मिल सकता है।
एनडीए के खिलाफ मोर्चा खोले शरद यादव का राजद खेमे से लडऩा तय है। जदयू से कभी उनके शिष्य रहे राज्य के लघु सिंचाई मंत्री दिनेश चंद्र यादव ने लडऩे की तैयारी शुरू कर दी है। खगडिय़ा से दिनेश चंद्र यादव 2009 का चुनाव जीते थे। लेकिन 2014 का लोकसभा चुनाव वह हार गए थे।इस बार खगडिय़ा से भाजपा के सम्राट चौधरी का लडऩा तय माना जा रहा है। भाजपा ने हाल ही में उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया है।
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के एनडीए छोड़कर राजद से हाथ मिला लेने के बाद यह तय है कि वह महागठबंधन की ओर से गया से प्रत्याशी होंगे। गया भाजपा की परम्परागत सीट रही है। ऐसे में वहां से सांसद हरि मांझी का टिकट कट जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी गनौरी मांझी को भाजपा ने नित्यानंद की टीम में शामिल करके इसके संकेत दे दिए हैं।
सासाराम से छेदी पासवान की जगह विधायक ललन पासवान को प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा है। एंटी इनकंबेंसी रोकने के लिए अश्विनी चौबे को बक्सर से भागलपुर और गिरिराज सिंह को नवादा से बेगूसराय भेज दिया जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।