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लोकसभा चुनाव 2019: बसपा मुखिया मायावती ने एक बार फिर ब्राह्मण कार्ड पर लगाया दांव

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के साथ मध्य प्रदेश व उत्तराखंड में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती एक बार फिर अपने पुराने एजेंडा पर हैं। विधानसभा चुनाव 2007 के बाद लोकसभा चुनाव 2009 में ब्राह्मण कार्ड के सहारे मैदान में उतरने वाली बसपा 2019 में फिर ब्राह्मण कार्ड पर भरोसा जताकर कांग्रेस की काट में भी लगी है।

समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बावजूद मायावती लोकसभा चुनाव 2019 में एक बार फिर ब्राह्मण कार्ड आजमाने की कवायद में है। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए बसपा सुप्रीमो ने अभी तक जितने भी प्रभारी घोषित किए हैं, उनमें सबसे बड़ी तादाद ब्राह्मण समुदाय के नेताओं की हैं। बसपा में माना जाता है कि जिन्हें लोकसभा प्रभारी बनाया जाता है, वही उम्मीदवार होते हैं।

बहुजन समाज पार्टी की जमीन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तुलना में पूर्वी उत्तर प्रदेश थोड़ा कमजोर माना जाता है। इसको देखते हुए मायावती ने एक बार फिर पुराना दांव चला है। बसपा सुप्रीमो ने कल लोकसभा के 18 प्रभारी की सूची को अंतिम रूप दिया। इनमें से कई नामों का ऐलान पहले ही किया जा चुका है।

बसपा ने ब्राह्मण कार्ड के रूप में भदोही से पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा, सीतापुर से पूर्व मंत्री नकुल दुबे, आंबेडकर नगर से राकेश पाण्डेय, फतेहपुर सीकरी से पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा उपाध्याय, कैसरगंज से संतोष तिवारी, घोसी से भूमिहार ब्राह्मण अजय राय, प्रतापगढ़ से अशोक तिवारी और खलीलाबाद से भीष्म शंकर तिवारी (कुशल तिवारी) के नाम तय हैं। लिस्ट में जिन आठ ब्राह्मणों को शामिल किया गया है उनमें से छह पूर्वी उत्तर प्रदेश के हैं।

पूर्वांचल ब्राह्मण को मजबूत गढ़ माना जाता है। इसी कारण ने बसपा पूर्वी उत्तर प्रदेश से छह ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण कार्ड पर बसपा अपनी ही आजमाई नीति ही काम कर रही है। इससे पहले भी बसपा ने 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2009 के लोकसभा चुनाव में दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का प्रयोग किया था। बसपा को इसका काफी लाभ मिला भी था। उत्तर प्रदेश में मायावती को ताज मिला था। इसके साथ ही राजनीतिक फायदा भी मिला था।

पूर्वांचल में ब्राह्मण व ठाकुरों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई जग-जाहिर है। इसी कारण पूर्वांचल में कांग्रेस-भाजपा की काट के लिए बसपा ब्राह्मणों पर एक बार फिर भरोसा जताया है। कांग्रेस भी अपना पूरा दम-खम पूर्वी उत्तर प्रदेश में लगा रखा है। कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को पूर्वांचल की कमान सौंपी है। ऐसे में राजनीतिक दलों के बीच ब्राह्मण वोटों को अपने पाले में लाने कोशिश तेज हो गई है। इस रणनीति के तहत ही बसपा ने पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाया है। मायावती को उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ब्राह्मणों को पाले में लाने में सफल हो सकती हैं।

पार्टी थिंक-टैंक को लगता है कि दलितों और मुसलमानों का समर्थन उनके साथ है। समाजवादी पार्टी के साथ हुए गठबंधन के बाद उन्हें ओबीसी का समर्थन भी मिलेगा। वहीं इस कार्ड के जरिए ब्राह्मण वोट भी उन्हें मिलेगा।

बसपा के पास ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्रा का भी है। वह राज्यसभा के सदस्य हैं। 2007 में भी उन्होंने दलित-ब्राह्मण वोटों को एकसाथ लाने में बड़ा रोल निभाया था।

 

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