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बिहार: बिना रामविलास पासवान के मजेदार होगा हाजीपुर का दंगल

हाजीपुर लोकसभा सीट की पहचान बन चुके रामविलास पासवान इस बार यहां के चुनावी अखाड़े में बतौर पहलवान नहीं उतरेंगे। उनकी जगह लोजपा से कोई और प्रत्याशी ही होगा। जीत का सेहरा कौन पहनेगा यह तो 2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम बतायेगा, लेकिन बिन रामविलास पासवान हाजीपुर का दंगल मजेदार होगा, यह तो तय है।

दस बार हाजीपुर से चुनाव लड़ चुके लोजपा अध्यक्ष 2019 में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे, इसकी घोषणा हो चुकी है। हालांकि वे राजनीति में सक्रिय भूमिका में रहेंगे और एनडीए की ओर से राज्यसभा में भी उनका जाना तय है। लेकिन हाजीपुर का चुनाव लंबे समय बाद बिना रामविलास पासवान के लड़ा जाएगा। हाजीपुर से पहली बार वे 1977 में सांसद बने। अब-तक वे आठ बार हाजीपुर से लोकसभा में गये हैं। एक बार 1991 में रोसड़ा संसदीय क्षेत्र से वे सासंद बने थे, जो अब समस्तीपुर क्षेत्र हो गया है। 2014 लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान कांग्रेस के प्रत्याशी संजीव प्रसाद टोनी को सवा दो लाख से अधिक वोटों के अंतर से हराये थे। इस चुनाव में जदयू के रामसुंदर दास को 95790 वोट मिले थे। 2009 में जदयू के ही प्रत्याशी रामसुंदर दास से रामविलास पासवान करीब 38 हजार वोटों से चुनाव हार गये थे। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी दसई चौधरी तीसरे स्थान पर थे, जिन्हें 21585 वोट मिले थे। रामविलास पासवान के प्रशंसक लोकसभा में बतौर सांसद उनकी कमी जरूर महसूस करेंगे।

पारस के उतारे जाने की संभावना

2019 में हाजीपुर से लोजपा के प्रत्याशी के रूप में रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस के उतारे जाने की संभावना है। हालांकि अभी यह तय होना है कि एनडीए में हाजीपुर सीट किस दल को मिलेगी। महागठबंधन में भी अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। हाजीपुर में रामविलास पासवान के खिलाफ सबसे अधिक पांच बार पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास ही चुनाव लड़े हैं। रामसुंदर दास का मार्च 2015 में निधन हो गया है।

लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा, भले ही रामविलास पासवान हाजीपुर से 2019 में चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन हाजीपुर को उन्होंने मां का दर्जा दिया है। हाजीपुर से रामविलास पासवान का गहरा लगाव है, वहां की जनता को वे कभी नहीं छोड़ेंगे।

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