
सीएजी रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में पेश की गई भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नवंबर 2021 में लागू और सितंबर 2022 में रद्द की गई शराब नीति के कारण दिल्ली सरकार को 2,002.68 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
यह शराब नीति आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के लिए एक बड़ी परेशानी बन गई थी, जिससे पार्टी के कई नेता, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल हैं, जेल पहुंचे। इस नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों को इस महीने हुए विधानसभा चुनाव में AAP की हार और 26 साल बाद दिल्ली में भाजपा सरकार बनने के मुख्य कारणों में से एक माना जा रहा है।
विधानसभा में भारी हंगामे और 15 आप विधायकों के निलंबन के बीच पेश की गई इस रिपोर्ट में विभिन्न कारणों से हुए नुकसान को अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
शराब नीति से हुए नुकसान के प्रमुख कारण
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे बड़ा नुकसान 941.53 करोड़ रुपये का हुआ, क्योंकि नई नीति के तहत अनियमित क्षेत्रों (non-conforming areas) में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति नहीं दी गई। ये वे क्षेत्र हैं जहां भूमि उपयोग मानकों के अनुसार शराब की दुकानें खोलने की अनुमति नहीं होती।
इसके अलावा, 19 जोन में लाइसेंस सरेंडर होने के बाद नए टेंडर जारी न करने के कारण सरकार को 890.15 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन जोनों से लाइसेंस शुल्क के रूप में कोई भी राजस्व प्राप्त नहीं हुआ और शराब की खुदरा बिक्री जारी रखने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गई।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कोविड-19 के नाम पर लाइसेंसधारियों को शुल्क माफ करने से सरकार को 144 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जबकि ज़ोनल लाइसेंसधारियों से गलत तरीके से जमा कराई गई सुरक्षा राशि के कारण 27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इन चार कारणों से हुए कुल नुकसान का आंकड़ा 2,002.68 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
नीति में उल्लंघन और अनियमितताएं
सीएजी रिपोर्ट में दिल्ली आबकारी विभाग की कई अनियमितताओं को उजागर किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के नियम 35 का सही ढंग से पालन नहीं किया गया, जिसके तहत किसी व्यक्ति या समूह को थोक विक्रेता, खुदरा विक्रेता और होटल-क्लब-रेस्तरां (HCR) श्रेणी के लिए एक साथ कई लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति नहीं होती। इससे कुछ चुनिंदा कंपनियों को लाभ पहुंचा।
शराब नीति के विरोधियों का मुख्य तर्क यह था कि थोक विक्रेताओं के लिए मार्जिन को 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरोप लगाया था कि इस 12% का आधा हिस्सा AAP नेताओं के लिए कमीशन के रूप में लिया जाता था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मार्जिन में बढ़ोतरी का तर्क यह दिया गया था कि लाइसेंसधारियों को गोदामों में एक सरकारी-अनुमोदित प्रयोगशाला स्थापित करनी होगी ताकि निर्माताओं से प्राप्त शराब की गुणवत्ता की जांच की जा सके। हालांकि, रिपोर्ट में यह पाया गया कि ऐसी कोई प्रयोगशाला स्थापित नहीं की गई और मार्जिन में बढ़ोतरी का कोई ठोस आधार नहीं था।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि शराब की आपूर्ति में तीन थोक विक्रेताओं का दबदबा था। दिल्ली में कुल बेची गई शराब का 71.70% केवल तीन कंपनियों—Indospirit (76 ब्रांड), Mahadev Liquors (71 ब्रांड) और Brindco (45 ब्रांड)—द्वारा आपूर्ति किया गया।
सरकारी बनाम निजी शराब दुकानें
सीएजी रिपोर्ट में पाया गया कि दिल्ली में सबसे अधिक बिकने वाले चार व्हिस्की ब्रांड सरकारी दुकानों की तुलना में निजी दुकानों में अधिक बेचे गए, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ।
उदाहरण के लिए, रॉयल स्टैग रिज़र्व/प्रीमियर व्हिस्की की केवल 9.25% बिक्री सरकारी दुकानों से हुई, जबकि 90.75% बिक्री निजी दुकानों में हुई। ऑफिसर्स चॉइस ब्लू व्हिस्की की बिक्री सरकारी दुकानों में 22.04% थी, लेकिन “MCD No 1” व्हिस्की (McDowell’s No 1) की सरकारी दुकानों में बिक्री केवल 2.26% रही।
इस रिपोर्ट के खुलासे के बाद विपक्ष ने आम आदमी पार्टी सरकार पर तीखा हमला बोला है और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।