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तीन साल बाद मिली बच्चो को ममता की छाव

गोरखपुर स्थित अनाथालय से तीन वर्ष बाद बच्चे छपरा मगर्वी अपने घर पहुंचे और मां से मिले। अपने बच्चों को पाकर मां की आंखें खिल उठीं। मां का दर्द है कि पति दुनिया में रहे नहीं। घर की माली हालत भी ठीक नहीं है। रहने के लिए सिर्फ एक कमरे का जर्जर मकान और अंत्योदय कार्ड है। दूसरों के सहारे घर का चूल्हा जलता है। बच्चों की ठीक ढंग से परवरिश आखिर कैसे होगी, इसकी चिंता सता रही है।

छपरा मगर्वी गांव निवासी ऊषा देवी ने बताया कि उसके पति रामललित गुप्ता को दोनों आंख से दिखाई नहीं देता था। जिसकी वजह से वह मजदूरी करने में असमर्थ थे। खेती नहीं होने से मजदूरी ही घर चलाने का सहारा था। घर की माली हालत खराब होने से बच्चों की ठीक ढंग से परवरिश नहीं हो पा रही थी। जिसकी वजह से परेशान होकर पति पांच साल पूर्व गोरखपुर के एक ट्रस्ट के विद्यालय में 17 वर्षीय बेटी मुस्कान, 13 वर्षीय बेटा बालक और सात वर्षीय बेटी दिप्ती को दाखिला दिला दिया। संस्था के माध्यम से बच्चों की परवरिश हो रही थी। 

तीन साल पहले पति राम ललित की मौत हो गई। ऊषा बेटे राहुल के साथ घर पर रह रही थी। इधर, मां को गोरखपुर ट्रस्ट में रहने वाले तीनों बच्चों की चिंता सताने लगी और उन्हें ट्रंस्ट से वापस घर लाने की मांग करने लगी। गांव के रियाजुद्दीन और सोयब गाजी ने प्रयास करके संस्था से तीनों बच्चों को रक्षाबंधन पर घर लाए। 

मां अपने बच्चों को करीब पाई तो उसकी आंखें खुशी से भर आईं। मां रोते हुए बोली कि पति की मौत पर भी बड़ी बेटी मुस्कान घर नहीं आ पाई थी। बेटी के चाचा उसे अपने साथ लखनऊ ले गए। गरीब परिवार को सिर्फ दूसरों के रहमों करम का ही भरोसा है। गांव के लोगों ने इस गरीब परिवार को शासन- प्रशासन से मदद की जरूरत जताई। सीडीओ अतुल मिश्र ने बताया कि गरीब परिवार को पात्रता के आधार पर जो भी सरकारी मदद दी जा सकती है, उसे दिलाई जाएगी। बच्चों का प्रवेश स्कूल में कराए जाने के लिए बीएसए को निर्देश दिया जाएगा।

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