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उत्तराखंड के भारत-चीन सीमा पर गांवों में बिक रही 130 रुपये किलो नमक तो 150 में चीनी

भारत-चीन सीमा पर बसे गांवों में महंगाई ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। बुर्फू, लास्पा और रालम गांवों में जरूरी सामान में आठ गुना तक महंगाई से रहना मुश्किल हो गया ।मुनस्यारी में 20 रुपये किलो मिल रहा नमक सीमा के गांवों में 130 रुपये किलो के भाव खरीदने को लोग मजबूर हैं। यही हाल रोज इस्तेमाल होने वाले अन्य जरूरी सामान का भी है।

भारत-चीन सीमा पर हर साल मार्च से नवंबर तक तीन ग्रामसभाओं के 13 से ज्यादा तोक (छोटे-छोटे गांव) के लोग माइग्रेशन करते हैं।सड़क से 52 से 73 किमी तक दूरी बसे ग्रामीणों का कहना है यदि सरकार उनके लिए उचित इंतजाम नहीं कर सकती तो आगे माइग्रेशन मुश्किल होगा।

महंगाई बढ़ने के मुख्य तीन कारण

1: पैदल रास्ते टूट चुके हैं। इस कारण सभी सामान घोड़े और खच्चर वालों से खरीदना पड़ता है। पहले लोग खुद पैदल भी सामान लाते थे।

2: कोरोना के बाद मजदूरों ने ढुलाई भाड़ा दोगुना कर दिया है। साल 2019 में प्रति किलो 40 से 50 रुपये भाड़ा था। अब ये 80 से 120 रुपये तक है।

3: कोरोना के कारण नेपाल से आने वाले मजदूरों की संख्या काफी कम हो गई। नेपाल मूल के मजदूर सस्ते में मिल जाते थे।

तीन साल से ऐसे बढ़ती जा रहीं कीमतें (दाम: रुपये प्रति किलोग्राम में)

सामान          2019    2020    2021

नमक            60        70       130

दाल मलका    80        90       200

मोटा चावल    50        80       150

चीनी             70        90       150

तेल सरसों      90       110      275

आटा            50        70       150

प्याज            60        90       125 (स्रोत: ये कीमतें स्थानीय लोगों और ग्राम प्रधानों ने बताई हैं।)

54 साल से आईटीबीपी और माइग्रेशन गांवों में सप्लाई करता हूं। ऐसी महंगाई पहली बार देखी। रास्ते खराब होने के कारण घोड़े-खच्चरों का ढुलाई भाड़ा बढ़ा है। नेपाली मजदूर न आने से भी कीमतें बढ़ी हैं।

कुंदन सिंह, सप्लायर, मुनस्यारी

माइग्रेशन गांवों को जोड़ने वाले रास्ते बंद होने से निश्चित तौर पर परेशानी बढ़ी है। ढुलाई भाड़ा बढ़ने से जरूरी सामान की कीमत में उछाल आना स्वाभाविक है। इस मामले में डीएम से चर्चा कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

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