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राज्य सरकार ने उठाया बड़ा कदम, गंगा को मैला किया तो रोज देना होगा पांच हजार जुर्माना

देहरादून। उत्तराखंड में गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की दिशा में राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। इस कड़ी में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के निर्देशों के क्रम में होटल, आश्रम व धर्मशालाओं पर शिकंजा कसा गया है। इनसे निकलने वाले सीवरेज अथवा गंदे पानी को गंगा और उसकी सहायक नदियों में बहाने पर संबंधित होटल, आश्रम व धर्मशाला पर पांच हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगाया जाएगा। इस संबंध में शासन ने आदेश जारी कर दिए हैं। वहीं, उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने इसकी निगरानी को रणनीति तैयार कर ली है।

गंगा की स्वच्छता और निर्मलता को लेकर केंद्र सरकार के साथ ही एनजीटी का भी खास फोकस है। राज्य सरकार भी इसमें जुटी हुई है। आंकड़े देखें तो अपने उद्गम स्थल गोमुख से लेकर ऋषिकेश तक गंगा का पानी पीने योग्य है। अलबत्ता, हरिद्वार में स्थिति कुछ खराब है। गंगा और उसकी सहायक नदियों में किसी भी दशा में गंदगी न जाने पाए, इसके लिए नमामि गंगे परियोजना के तहत उत्तरकाशी से हरिद्वार तक नालों को टैप करने के साथ ही सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी बनाए जा रहे हैं।

इस बीच एनजीटी ने हाल में ही राज्य में होटल, आश्रम व धर्मशालाओं से निकलने वाले सीवरेज एवं गंदे पानी के निस्तारण के उपायों के बारे में जानकारी मांगी थी। यह रिपोर्ट एनजीटी को भेज दी गई है। इसमें प्रदेशभर में 20 या इससे अधिक कमरों वाले होटल, आश्रम व धर्मशालाओं की संख्या 1573 बताई गई है।

अब एनजीटी के निर्देशों के क्रम में शासन ने होटल, आश्रम व धर्मशालाओं पर शिंकजा कसा है। अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह की ओर से जारी आदेश के मुताबिक जो भी होटल, आश्रम व धर्मशालाएं सीवरेज और गंदे पानी को गंगा एवं उसकी सहायक नदियों में बहा रहे हैं, उन पर रोजाना पांच हजार रुपये के हिसाब से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति प्रत्यारोपित की जाएगी। इस संबंध में पीसीबी को जरूरी कदम उठाने के लिए निर्देशित किया गया है।

पीसीबी के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि के मुताबिक शासन के आदेश के क्रम में बोर्ड ने होटल, आश्रम व धर्मशालाओं की निगरानी के लिए रणनीति तैयार कर ली है। उन्होंने कहा कि लगातार मॉनीटरिंग के साथ ही आकस्मिक चेकिंग की जाएगी। इसके लिए निर्देश दिए गए हैं।

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