उपचुनावः गोरखपुर-फूलपुर के नतीजों से मिला 2019 का फॉर्मूला

YOGI AKHIESH

लोकसभा उप चुनावों में भाजपा की हार और विपक्षी दलों के उम्मीदवारों की जीत का असर आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है। उत्तर प्रदेश की दो महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों पर सपा और बिहार की एक लोकसभा सीट पर राजद की जीत से सबसे बड़ा फायदा विपक्ष को यह हुआ है। इससे उसके टूट रहे हौंसलों को बल मिला है।

उत्तर प्रदेश की दोनों महत्वपूर्ण सीटों पर जिस प्रकार सपा-बसपा ने मिलकर भाजपा को पटखनी दी है, इस प्रकार का फार्मूला भविष्य में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में विपक्ष अन्य राज्यों या राष्ट्रीय स्तर पर भी आजमा सकता है। खासकर जिन राज्यों में भाजपा का सीधा मुकाबला एक से अधिक दलों से है, वहां यह फार्मूला अधिक असर दिखा सकता है।

प्रतिष्ठा की सीट
गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट भाजपा की सीधी प्रतिष्ठा से जुड़ी है। क्योंकि एक मुख्यमंत्री ने खाली की थी और दूसरी उप मुख्यमंत्री ने। गोरखपुर सीट से योगी अजेय माने जाते थे और यहां जीत हासिल करने में पूरी ताकत भी लगाई गई थी। लेकिन हार से विपक्ष को यह संकेत मिला है कि अजेय कोई नहीं है। यदि विपक्ष रणनीति बनाकर चले तो जीत का रास्ता बंद नहीं हुआ है।

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मिला हौसला
लगातार भाजपा की जीत से राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के हौंसले पस्त हो चुके थे। त्रिपुरा में वामपंथ पर भाजपा की जीत ने विपक्ष को सन्न कर दिया था। आज स्थिति यह है कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि किस दिशा में जाए और कैसे जाए। लेकिन उप चुनाव की जीत ने विपक्ष को यह संदेश दिया है कि भाजपा का मुकाबला एकजुट होकर किया जा सकता है। लेकिन यह देखना होगा कि विपक्ष इन चुनावों की जीत से सबक लेकर एकजुट होता है या फिर पहले की तरह बिखरा-बिखरा रहता है।

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राजद ने चौंकाया
अररिया सीट पर राजद की वापसी ज्यादा नहीं चौंकाती है। लेकिन फूलपुर और गोरखपुर सीट पर सपा की जीत प्रदेश सरकार के कामकाज की विफलता से ज्यादा विपक्ष की रणनीति की सफलता को दर्शाती है।