हाईकोर्ट में तीसरे जज ने एमबीबीएस प्रवेश कोटे पर सुनाया फैसला कहा दाखिले में छूट न देना असंवैधानिक

शिमला। एमबीबीएस कक्षाओं में हिमाचल से बाहर निजी व्यवसाय अथवा नौकरी करने वाले अभिभावकों के बच्चों के दाखिले को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे मामले पर तीसरे जज संदीप शर्मा ने फैसला सुना दिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने इस बात पर सहमति जताई कि प्रदेश से बाहर निजी व्यवसाय करने वाले अभिभावकों के बच्चों को एमबीबीएस कोर्स में दाखिले के लिए छूट न देना असंवैधानिक है।

सरकार ने अन्य राज्यों से पढ़ाई करने वाले हिमाचली छात्रों को दो श्रेणियों में बांटा है। पहली श्रेणी में वे छात्र हैं जिनके अभिभावक अन्य राज्यों अथवा केंद्र सरकार सहित सरकारी उपक्रमों के अधीन नौकरी में हैं या कभी रहे थे। दूसरी श्रेणी में वे छात्र हैं जिनके अभिभावक निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं या कभी रहे थे। सरकार ने मौजूदा सत्र में पहली श्रेणी के छात्रों को इस शर्त से छूट दी परंतु दूसरी श्रेणी के छात्रों को इसका लाभ नहीं दिया। दूसरी श्रेणी के कुछ छात्रों ने इस छूट का लाभ मांगते हुए कहा कि उनके साथ सरकार  भेदभाव कर रही है। दूसरी श्रेणी के साथ

संविधान के तहत भेदभाव हो रहा है या नहीं, इस मुद्दे पर खंडपीठ में सुनवाई कर रहे दोनों न्यायाधीशों में मतांतर पाया गया था।

मामले में सुनवाई न्यायाधीश धर्म चंद चौधरी व न्यायाधीश विवेक ठाकुर की खंडपीठ के आदेशानुसार तीसरे न्यायाधीश के समक्ष हुई। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने अपने निर्णय में न्यायाधीश विवेक ठाकुर के निर्णय से सहमति जताई। न्यायाधीश संदीप शर्मा के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि यदि इस श्रेणी के बच्चों को दाखिला दिया गया तो संभावना यह है कि ये बच्चे हिमाचली कोटे के तहत एमबीबीएस में दाखिला लेंगे और कोर्स पूरा होते ही अन्य राज्यों में सेवाएं देने की प्राथमिकता देंगे। यही कारण है कि सरकार

ने अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए इस श्रेणी के बच्चों को हिमाचली कोटे से बाहर रखा है। प्रार्थियों के अनुसार सरकार भेदभावपूर्ण तरीके से उन्हें दाखिले से बाहर कर रही है। सरकार ने ऐसा कोई सर्वे नहीं किया है जिसके तहत उनकी श्रेणी को संवैधानिक तौर पर दाखिले से वंचित किया जा सके।